फोटोः डीडी 14
कैप्शन : युवाओं को संबोधित करते हुए कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ।
नवरात्र साधना करने से साधक को मिलती है सत्कर्म करने की प्रेरणा
भगवती प्रसाद गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
हरिद्वार 4 अक्टूबर। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में आयोजित नवरात्र साधना के स्वाध्याय शृंखला के अंतर्गत युवाओं को संबोधित करते हुए कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि नवरात्र साधना करने से साधक को सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती है और साथ ही साधक सकारात्मक ऊर्जा से भी अनुप्राणित होता है। इंद्रियों को संयमित करने में भी नवरात्र साधना की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने गीता के चैथे अध्याय के २७वाँ श्लोक की चर्चा करते हुए कहा कि आत्म संयम रूपी अग्नि में इन्द्रियों की सभी क्रियाओं को आहुति करना विशेष फलदायी है। उन्होंने कहा कि इन दिनों साधनाकाल में प्रत्येक कर्म शुभ, शुद्ध और निष्काम भाव से करना चाहिए, जिससे शक्तिस्वरूपा माता का विशेष कृपा प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि कर्म का फल देने के लिए प्रकृति में संपूर्ण न्याय की विधा है। इच्छा, क्रिया और भावना का समन्वय कर्म बनता है। श्री अरविन्द, महर्षि रमण, कबीर, रैदास, मीरा आदि के सत्कर्मों पर विस्तृत जानकारी दी। इससे पूर्व कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने देसंविवि के युवाओं के विभिन्न साधनापरक समस्याओं का समाधान किया। इस अवसर पर संगीत विभाग के भाइयों ने ‘चाहते हो यदि बनाना जगत को चमन....’ प्रज्ञागीत से उपस्थित साधकों सत्प्रेरणा का संचार किया। इस विशेष कक्षा में कुलपति श्री शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन, समस्त देसंविवि परिवार सहित शांतिकुंज के अंतेवासी कार्यकर्ता शामिल रहे।
कैप्शन : युवाओं को संबोधित करते हुए कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ।
नवरात्र साधना करने से साधक को मिलती है सत्कर्म करने की प्रेरणा
भगवती प्रसाद गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
हरिद्वार 4 अक्टूबर। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में आयोजित नवरात्र साधना के स्वाध्याय शृंखला के अंतर्गत युवाओं को संबोधित करते हुए कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि नवरात्र साधना करने से साधक को सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती है और साथ ही साधक सकारात्मक ऊर्जा से भी अनुप्राणित होता है। इंद्रियों को संयमित करने में भी नवरात्र साधना की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने गीता के चैथे अध्याय के २७वाँ श्लोक की चर्चा करते हुए कहा कि आत्म संयम रूपी अग्नि में इन्द्रियों की सभी क्रियाओं को आहुति करना विशेष फलदायी है। उन्होंने कहा कि इन दिनों साधनाकाल में प्रत्येक कर्म शुभ, शुद्ध और निष्काम भाव से करना चाहिए, जिससे शक्तिस्वरूपा माता का विशेष कृपा प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि कर्म का फल देने के लिए प्रकृति में संपूर्ण न्याय की विधा है। इच्छा, क्रिया और भावना का समन्वय कर्म बनता है। श्री अरविन्द, महर्षि रमण, कबीर, रैदास, मीरा आदि के सत्कर्मों पर विस्तृत जानकारी दी। इससे पूर्व कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने देसंविवि के युवाओं के विभिन्न साधनापरक समस्याओं का समाधान किया। इस अवसर पर संगीत विभाग के भाइयों ने ‘चाहते हो यदि बनाना जगत को चमन....’ प्रज्ञागीत से उपस्थित साधकों सत्प्रेरणा का संचार किया। इस विशेष कक्षा में कुलपति श्री शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन, समस्त देसंविवि परिवार सहित शांतिकुंज के अंतेवासी कार्यकर्ता शामिल रहे।
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