नवरात्र साधना के साथ
यज्ञ का विशेष
महत्त्व : कुलाधिपति
भगवती प्रसाद गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
हरिद्वार 6
अक्टूबर। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के
कुलाधिपति डॉ. प्रणव
पण्ड्या ने कहा
कि नवरात्र साधना
के साथ यज्ञ
का विशेष महत्त्व
है। नवरात्र साधना
आंतरिक जगत की
सफाई करता है,
तो वहीं यज्ञ
हमारे बाह्य जगत
का शुद्ध करता
है। श्रीमद्भगवत गीता
में भी यज्ञ
की विशेष महत्ता
बताई गयी है।
वे देवसंस्कृति विश्वविद्यालय
में नवरात्र साधना
के अवसर पर
आयोजित स्वाध्याय शृंखला सातवें
दिन युवाओं को
संबोधित कर रहे
थे। उन्होंने कहा
कि यज्ञ के
कई स्वरूप होते
हैं कई आयाम
होते हैं। द्रव्य
यज्ञ, तपोयज्ञ, योग
यज्ञ, स्वाध्याय यज्ञ,
ज्ञान यज्ञ। ये
जो यज्ञ है
वह व्रतों से
युक्त होते हैं।
यज्ञ की प्रक्रिया
भी क्रमिक रूप
से स्थूल से
सूक्ष्म होती है।
जैसे हमने इंद्रियों
को सूक्ष्म रूप
में पहुँचाया था,
ऐसे ही यज्ञ
की प्रक्रिया भी
धीरे-धीरे स्थूल
से सूक्ष्म होती
है। शुरुआत में
हम जो यज्ञ
करते हैं वह
द्रव्य यज्ञ होता
है। बाद में
यह सूक्ष्म रूप
में तपोयज्ञ के
रूप में बदल
जाता है। उन्होंने
कहा कि तपोयज्ञ
से और भी
सूक्ष्म होता है
योग यज्ञ और
यह यज्ञ जब
और अधिक सूक्ष्म
होता है स्वाध्याय
यज्ञ कहलाता है।
स्वाध्याय यज्ञ का
फल हमें विवेक
के रूप में
मिलता है। कुलाधिपति
डॉ. पण्ड्या ने
कहा कि मनोयोगपूर्वक
नियमित साधना और स्वाध्याय
करने वाले साधक
किसी के भी
गुण, दोषों, विचारों
तथा आचरणों को
पारदर्शी की तरह
अपनी सूक्ष्म दृष्टि
से देख सकता
है। उसे अनेक
प्रकार के ऐसे
दिव्य अनुभव होते
हैं, जो बिना
अलौकिक शक्ति के प्रभाव
के साधारणतः नहीं
होते। इस अवसर
पर डॉ. पण्ड्या
ने गीता के
चैथे अध्याय के
२८वें श्लोक की
विस्तृत व्याख्या की। इससे
पूर्व कुलाधिपति डॉ.
पण्ड्या ने ‘जिन्दगी
हवन करें चलो
समाज के लिए........’
वांसुरी, सितार आदि वाद्ययंत्रों
के साथ प्रज्ञागीत
प्रस्तुत उपस्थित लोगों को
भावविभोर कर दिया।
इस अवसर पर
कुलपति श्री शरद
पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय
पण्ड्या सहित समस्त
देसंविवि परिवार, शांतिकुंज के
अंतेवासी साधक एवं
विश्वभर से आये
गायत्री साधक उपस्थित
रहे।
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