Sunday, 3 November 2019

छठ पूजा दूसरा दिनः व्रतियों ने दिया सांध्यकालीन अर्घ्य


डीडी 7, डीडी 8
कैप्सनः छठ पूजा के पावन अवसर पर सांध्यकालीन अर्घ्य देते व्रती
छठ पूजा दूसरा दिनः व्रतियों ने दिया सांध्यकालीन अर्घ्य
अस्ताचलगामी सूर्य व्रतियों ने दिया अर्घ्य
संदीप गोयल/एसकेएम न्यूज सर्विस
देहरादून, 2 नवम्बर। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ शुरू हुए छठ पर्व के दूसरे दिन आज व्रतियों ने पोखर (तालाब), नदी में खडे होकर अस्तांचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। इस पावन अवसर पर नंदा की चैकी, टपकेश्वर, रायपुर, मालदेवता, चंद्रबनी सहित विभिन्न स्थानों नहरो एवं तालाबों के आसपास हजारो व्रतियों ने जहां सूर्य को अर्घ्य दिया वहीं इन स्थापनों पर मेले जैसा दृश्य देखने को मिला। व्रतियों ने विधि विधान के साथ अस्तांचलगामी सूर्य की पूजा अर्चना भी की। छठ पर्व के पावन अवसर पर डा. आचार्य सुशांत राज ने बताया कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ यह पर्व शुरू होता है इसमें व्रती का मन तन दोनो ही शुद्ध सात्विक होते है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही देवी छठ माता कि पूजा अर्चना शुरू हो जाती है और सप्तमी तिथि की सुबह तक चलती है। आज षष्ठी तिथि के पूरे दिन निर्जल रहकर व्रतियों ने शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी एवं तालाब मे खडे होकर अघ्र्य देते हुए अपने मन की कामना सूर्य देव से कही। सप्तमी तिथि के दिन भी सुबह के समय कल (आज) उगते सूर्य को भी नदी तालाब में खडे होकर व्रती अर्घ्य देंगे और अपनी मनोकामनाओ के लिए प्रार्थना करेंगे। छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मईया की पूजा विधि विधान से की जाती है। 
छठ पूजा का प्रारम्भ कब से हुआ, सूर्य की अराधना कब से प्रारम्भ हुयी इसके बारे में पौराणिक कथाओ में बताया गया है। सतयुग  में भगवान श्री राम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांडवो की पत्नी द्रोपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मईया की पूजा से जुडी एक कथा राजा प्रियवद की है। जिन्होने सबसे पहले छठी मईया की पूजा की थी। डा. आचार्य सुशांत राज कहते हैं कि छठ व्रत दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है। यह व्रत साल में दो बार मनाया जाता है। हिंदू क्लैंडर के अनुसार चैत्र मास और फिर कार्तिक मास में यह व्रत होता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह बडे पैमाने पर मनाया जाने वाला पर्व है।


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