फोटोः डीडी 9
कैप्शन : कार्यक्रम मे भाग लेते गणमान्य लोग।
धूमधाम से मनाया गया श्री गुरूनानक देव का 550वां जन्मोत्सव
संदीप गोयल /एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
देहरादून। आज गुरुनानक नामलेवा द्वारा कालिका मार्ग पर श्री गुरूनानक देव जी का 550वां जन्मोत्सव (प्रकाशपर्व) को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। जिसमें सेवको द्वारा केक काटा गया जिसका साइज 12x20का निर्माण किया गया एवं साथ मे गुरु का अटूट लंगर वर्ता गया।
गुरु नानक देव जी अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के १५ दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालू जी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।
बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। ७-८ साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।
इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत १५०७ में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। १५२१ तक इन्होंने चार यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियाँ" कहा जाता है।
इस अवसर पर विशेष रूप से पूर्व पार्षद संतोख सिंह, इंदरजीत सिंह, बलप्रीत सिंह, खैमजीत सिंह, गुरमीत सिंह, मनप्रीत सिंह (मनी) नागपाल, अमरजीत सिंह, जसबीर सिंह, हरजीत सिंह, रणजीत सिंह, हरपाल सिंह, सुप्रीत सिंह, दीपक आनंद, प्रभदीप सिंह, हविंदर मिनोचा, शंटी नागपाल, गुलशन सिंह टोनी, गुरदीप सिंह, संजीव विज एवं गणमान्य लोग उपस्थित हुए।
कैप्शन : कार्यक्रम मे भाग लेते गणमान्य लोग।
धूमधाम से मनाया गया श्री गुरूनानक देव का 550वां जन्मोत्सव
संदीप गोयल /एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
देहरादून। आज गुरुनानक नामलेवा द्वारा कालिका मार्ग पर श्री गुरूनानक देव जी का 550वां जन्मोत्सव (प्रकाशपर्व) को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। जिसमें सेवको द्वारा केक काटा गया जिसका साइज 12x20का निर्माण किया गया एवं साथ मे गुरु का अटूट लंगर वर्ता गया।
गुरु नानक देव जी अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के १५ दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालू जी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।
बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। ७-८ साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।
इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत १५०७ में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। १५२१ तक इन्होंने चार यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियाँ" कहा जाता है।
इस अवसर पर विशेष रूप से पूर्व पार्षद संतोख सिंह, इंदरजीत सिंह, बलप्रीत सिंह, खैमजीत सिंह, गुरमीत सिंह, मनप्रीत सिंह (मनी) नागपाल, अमरजीत सिंह, जसबीर सिंह, हरजीत सिंह, रणजीत सिंह, हरपाल सिंह, सुप्रीत सिंह, दीपक आनंद, प्रभदीप सिंह, हविंदर मिनोचा, शंटी नागपाल, गुलशन सिंह टोनी, गुरदीप सिंह, संजीव विज एवं गणमान्य लोग उपस्थित हुए।
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